नहीं ये लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ है
पुरे चुनाव के दौरान धृतराष्ट्र और गांधारी के ओजस्वी बेटे ने माँ बाप का मुँह नहीं देखा | उसे डर था कि कहीं माँ बाप के राज का अतीत उसके वर्तमान को न ख़राब कर दे लेकिन पगले को क्या पता कि प्रजा भले ही राज्य छोड़ दे अतीत और परछाई कभी किसी का साथ नहीं छोड़ती |
ओजस्वी को एक और युवराज का साथ मिला एक ऐसा युवराज जो हार जीत से परे था किंचित नहीं भयभीत था | उस युवराज की ख़ासियत थी आलू से सोना निकालने में, मैदान में हार के बाद मिट्टी पर दोषारोपण में | फिर क्या था निकल पड़े दो युवराज | सब शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गया नारदमुनि यहाँ से वहाँ और वहाँ से यहाँ की ख़बरें अपनी आदत के मुताबिक मिर्च मसाला लगाकर फ़ैलाते रहे | आख़िरकार वो दिन आ ही गया जिसका उन्हें बेसब्री से इंतजार था - काउंटिंग डे
धृतराष्ट्र और गांधारी काउंटिंग से एक दिन पहले चर्चा और चिंतन में मग्न थे | हस्तिनापुर की गद्दी जिसपर कभी उनका एकछत्र राज था उसे फिर से पाने की तीव्र इच्छा और बलवती हो गई थी | 100 बेटों का करियर भी दांव पर लगा था | दोनों चाहते तो अपने बच्चों को किसी दूसरे करियर में भेज सकते थे लेकिन वो जानते थे कि बाहर बहुत कॉम्पिटिशन है और बच्चे इस लायक हैं नहीं कि बाहर योग्यों से प्रतिस्पर्धा कर सकें इसलिए कोई रिस्क नहीं लेना |
इतना बड़ा प्रतापी राज्य जिसे हमने मंडल, कमंडल माय बाप के समीकरण से सींचा उसे दूसरे को कैसे दे दें | अब राज है तो जंगल भी होगा लेकिन उसी राज्य में विदुर जैसे लोग भी थे जिन्होंने हस्तिनापुर को जंगलराज का नाम दे दिया तब से ही पति पत्नी उनसे कुपित रहने लगे | हालाँकि जंगल राज के भी कुछ नियम कानून होते हैं लेकिन उसमें कोई नियम कानून नहीं थे |
संजय को धृतराष्ट्र और गांधारी के पास ही रखा गया काउंटिंग का आँखों देखा हाल सुनाने | कहो संजय क्या हाल है ?
शुरूआती रुझानों में ओजस्वी आगे दिख रहे महाराज | ओह्ह्ह्ह बहुत अच्छे फिर से हमारा राज आएगा; संजय ने टोकते हुए कहा - राज नहीं महाराज जंगल राज - हाँ हाँ वही लेकिन ये बातें तो सिर्फ़ हम जानते हैं, देख नहीं रहे आजकल नारदमुनि कितना विचरण कर रहे कहीं उन्हें भनक लग गई तो दिक्कत हो जाएगी |
तभी दासी आई - महाराज आप दोनों की बीपी की दवाई | नहीं नहीं अभी हमारा बीपी एकदम ठीक है ले जाओ काउंटिंग के पश्चात देखेंगे
महाराज कुछ ठीक नहीं लग रहा - क्या हुआ संजय ? महाराज हम पीछे जाने लगे
क्या ऐसा कैसे हो रहा - हाँ महाराज
और जैसे जैसे दिन ढलता गया वापसी के उनके सपने भी कमजोर होते गए | सूर्यास्त होते होते उम्मीदें जमींदोज हो गईं मानो रणभूमि में किसी युवराज ने हाइड्रोजन बम छोड़ दिया हो | सब धुआं धुआं सा हो गया |
नहीं ये लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ है धृतराष्ट्र चीख पड़े | और सबसे पहले इस बुरी खबर को सुनाने के लिए संजय को बर्खास्त किया
नारायण नारायण महाराज इतना क्रोध - हाँ मुनिवर लेकिन महाराज आप तो कभी लोकतंत्र के समर्थक नहीं रहे हमेशा परिवारतंत्र की बातें की - नारद मेरा बीपी मत बढ़ाओ
इंद्रप्रस्थ के युवराज को संदेशा भेजो - लेकिन वो तो अपने पुष्पक विमान से कोलंबिया गए हैं | सेवक ने बताया - ओह्ह्ह कमबख़्त कोलंबिया गया और मेरे बच्चों की लुटिया डुबो गया |
ओजस्वी कहाँ है - महाराज वो अपने सैनिकों के साथ लालटेन में तेल भरवाने गए हैं - क्या लेकिन हमने 15 साल में इतना तेल भरवाया फ़िर कमी कैसे हो गई ?
महाराज जनता ने निकाल दिया - क्या ? वही तेल महाराज
तभी विदुर आए - महाराज महारानी का नाम लिखवा दीजिये - मेरा नाम धूमिल कर अब महारानी का नाम कहाँ लिखवाना चाहते हो - जी महाराज वो जो सबको दस दस हजार मिले थे तो महारानी को भी मिलेंगे , क्या मेरे घर में फ़ूट डालेंगे
महाराज चिल्लाने लगे - जंगलराज आ गया जंगलराज आ गया |
बाल दिवस के दिन बाल कांड हो गया
Bahut hi shandar
ReplyDelete